” जिंदगी “

” ए जिंदगी तेरे जज्बे को सलाम

पता है मंजिल मौत है,

फिर भी दौड़ रही है

अपनेही बिखरे टुकड़ों को जोड़ रही है;

इन टुकड़ों को जोड़कर जो बनेगा

वो तेरा ही साचा होगा,

कभी सुख-दुख,कभी धूप-छाँव

इन सब मैं लपेटा तेरा ही तो भाव होगा;

पेहली बार जब आँखें खुली….

तेरे होने का एहसास नही था,

आज जब तेरा एहसास है

आँखोने सपने देखना छोड़ दिया;

जिना था बचपन लेकिन

जवानी की चाह ने जीने नही दिया,

जवानी भी ठीक से जी न पाए

कंधे पर आए फर्ज़ोंने पैरों को जखड़ लिया…..;

सपनोंको हक़ीक़त बनाने की कोशिश में

अपनोंको दूर कर गए…..,

आ पहुँचे गिरगिटोंकी दुनिया में

असली रंग किसी का न जान पाए;

यहाँ आँसू भरी आँखें पता नहीं

खुशी बयाँ करती है, या गम छिपाती है,

मन के गेहरे घावों को भी

अपने आप में समेट के रखती है;

बक्श दें ए जिंदगी………

थक गए है तेरी नौकरी से,

मौत के दरवाजे तक आ पहुंचे है

तेरा मतलब समझतें समझातें;

इतने दिन जीने के बाद भी

ये उलझन नहीं सुलझा पाए,

तू हमारे लिए बनी है,या हम तेरे लिए बनाए गए

बस यही बात ना जान पाए…………………”

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